Thursday, October 3, 2013

तजुर्बा

  आज जिंदगी ने एकऔर तजुर्बा दे दिया
 समझते हुए भी हमसे यह पाप हो गया |
सुना भी था पढ़ा भी था कई बार कई जगह
 अपने दर्द अपने तक सीमित रखो छुपा कर |
 लोग हसतेचेहरों  के दीवाने हैं मुस्कुराहटों पे लुट जाने वाले हैं |
 रजो गम जो बताओगे किसी को कुछ देर दिखावा कर
 मज़ाक बनाएंगे बाद में हसेंगे तमाशा बन जाएगा  |
   एक और रंग ज़िन्दगी आज मिल गय हमें ,
   समझते बूझते  यह पाप हो गया  हमसे  |
   सलाम  ज़माने  के  इस  अभिनय   को
  कितने मंझे हुए कलाकार हैं यहाँ
     मुखौटे     मासूमियत  के     ओढ़े |
 रिश्तों की दुहाई दे किसी के अरमानों का
  कत्ल करने वाले हेर मोड़ पे मिल जायेंगे |


4 comments:

  1. कदाचित सत्य ही कहा..सुन्दर अभिव्यक्ति ..आशा जी

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  2. बहुत सुंदर और सही बात आशा ....सुंदर रचना

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