Wednesday, August 21, 2013

                      फिर याद आई

हर वर्ष की तरह यह राखी फिर आई
फिर दबे दर्द हरे कर गई
आँखों मैं आंसुओं का सैलाब दे गई
जिसे भूलने की अनथक तमन्ना थी
उसकी याद फिर दिला गई
आंसुओं के सैलाब को छुपा छुपा
अब तो मैं भी बेहाल हो गई
एक सखी आ कर फिर उस
बेदर्द की याद दिला गई
वक़्त के साथ यह उसकी रिक्तता
का एहसास करा गई
क्यूँ आती है राखी और भैया दूज
उस दर्द को बढ़ा गई


2 comments:

  1. ये दर्द बहुत सी बहने सहती हैं आशा .....मैं भी सहती हु ....बहुत अच्छा लिख है

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  2. :( Rama yeh dard bhagwan Dushman ko bhi na de

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